वाराणसी की ज्ञानवापी का बंदर कनेक्शन, हैरान कर देगा सबको*

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वाराणसी। वाराणसी के जिला जज परिसर में ज्ञानवापी मामले में चल रही सुनवाई में इन दिनों वकीलों की जिरह से ज्यादा चर्चा कोर्ट में एक बंदर की शांति प्रिय मौजूदगी की हो रही है।

*बन्दर , ज्ञानवापी विवाद और कोर्ट*

ज्ञानवापी मामले में जिला जज की अदालत में आज सुनवाई चल रही है। साल 2025 में ये पहली सुनवाई थी। शैलेन्द्र पाठक और लक्ष्मी देवी के एफटीसी से जिला जज की अदालत में टीए (ट्रांसफर एप्लीकेशन )पर सुनवाई हुई और ज्ञानवापी से जुड़े सभी मामले क्लब कर हाईकोर्ट में ट्रांसफर करने संबंधी मामले में भी सुनवाई हुई. इस मामले में लिखित हिन्दू पक्ष के वकील सुधीर त्रिपाठी ने जिला जज संजीव पाण्डेय की अदालत में लिखित प्रार्थनापत्र दिया. इन दोनों मामले में 18 जनवरी को अगली सुनवाई है ।
लेकिन सुनवाई से ज़्यादा चर्चा कचहरी परिसर में एक बंदर की मौजूदगी की हो रही थी. जिला जज की अदालत परिसर सहित सीजेएम कोर्ट और दूसरे कोर्ट में भी वो बंदर काफी देर तक बैठा रहा. फ़ाइल देखते हुए टेबल कुर्सी पर बैठे हुए बंदर ने किसी को परेशान भी नही किया. करीब घंटे भर रहने के बाद बंदर वहां से चला गया ।

*बन्दर की मौजूदगी से हिंदू पक्ष खुश क्यों*

इस घटना के बाद से हिन्दू पक्ष के लोगों और उनके वकीलों में जबरदस्त उत्साह है. हिन्दू पक्ष के वकील मदन मोहन यादव ने इसे अयोध्या की घटना से जोड़कर देखा. मदन मोहन ने कहा कि ऐसी ही घटना अयोध्या में हुई तो राम मंदिर का रास्ता क्लियर हुआ. अब काशी में भी ऐसी ही घटना हुई तो ज्ञानवापी में भी घंट घड़ियाल गूंजेगा. हिन्दू पक्ष के ही दूसरे वकील सुधीर त्रिपाठी ने कहा कि शनिवार के दिन बंदर ऐसे समय में जिला जज की अदालत के सामने आया जब उसकी सुनवाई हो रही थी. अयोध्या की ही तरह अब काशी में भी भव्य विश्वनाथ मंदिर का रास्ता तैयार हो गया है. जल्दी ही इस मामले में हिन्दुओं के लिए कोई शुभ संकेत मिल सकता है.

*क्या हुआ था अयोध्या में जब बंदर दिखा था*

आज से 39 साल पहले 1 फरवरी 1986 के दिन अयोध्या में विवादित ढांचे के परिसर को जिला एवं सेशन जज के आदेश पर तुरंत खोल दिया गया था. सेशन कोर्ट के आदेश और जिला मजिस्ट्रेट द्वारा इसका पालन किए जाने के बाद भारत की राजनीति बदल गई.उस मामले में भी एक बंदर से जुड़ा वाकया बहुत चर्चित हुआ था.
अयोध्या के तत्कालीन जिला जज केएम पांडेय ने साल 1991 में छपी अपनी आत्मकथा में इस घटना का जिक्र किया है कि “जिस रोज मैं ताला खोलने का आदेश लिख रहा था, मेरी अदालत की छत पर एक काला बंदर पूरे दिन फ्लैग पोस्ट को पकड़कर बैठा रहा. वे लोग जो फैसला सुनने के लिए अदालत आए थे, उस बंदर को फल और मूंगफली देते रहे, पर बंदर ने कुछ नहीं खाया. चुपचाप बैठा रहा. मेरे आदेश सुनाने के बाद ही वह वहां से गया. फैसले के बाद जब डी.एम. और एस.एस.पी. मुझे मेरे घर पहुंचाने गए, तो मैंने उस बंदर को अपने घर के बरामदे में बैठा पाया. मुझे आश्चर्य हुआ. मैंने उसे प्रणाम किया. वह कोई दैवीय ताकत थी.”

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