प्रयागराज। त्रिवेणी के पावन तट पर आयोजित हुए आस्था के महाकुंभ 2025 के बाद अब इसी तट पर दुनिया के सबसे बड़े वार्षिक धार्मिक आयोजन माघ मेला 2026 के आयोजन की तैयारी है।
महाकुंभ की तुलना में इस बार के माघ मेले में चुनौतियों की त्रिवेणी को पार करना होगा । कई मोर्चों पर ये चुनौतियां प्रशासन के सामने है।
*महाकुंभ में त्रिवेणी में जल की कमी थी चुनौती तो माघ मेले में संगम में जल की अधिकता*
महाकुंभ हो या माघ मेला , संगम आने वाला श्रद्धालुओं का रेला पुण्य काल में त्रिवेणी में आस्था और मुक्ति की डुबकी लगाने आता है। जब महाकुंभ आया तो हो हल्ला मचा कि 60 करोड़ श्रद्धालुओं के लिए निर्मल जल की कमी को कैसे पूरा करेगा प्रशासन। लेकिन सरकार ने वो भी कर दिखाया और इतना ही नहीं जो लोग डुबकी लगाने संगम नहीं आ पाए उन्हें उनके गृह जनपद ही अग्नि शमन विभाग की गाड़ियों से संगम का जल भिजवा दिया गया। लेकिन अब जब 3 जनवरी से माघ मेले का आयोजन होना है इस बार फिर गंगा जल ही चुनौती बन गया है। इस बार त्रिवेणी में बाढ़ का पानी अभी भी पूरी तरह से सामान्य स्तर पर न पहुंच पाने से पानी की अधिकता ही सबसे बड़ी चुनौती है। सामान्य दिनों में संगम में 10 हजार क्यूसेक पानी रहता है लेकिन इस बार 21 हजार क्यूसेक से अधिक जल संगम में सरदर्द बन गया है। पानी उतरे तो मेले के आयोजन के लिए भूमि मिले।
*बिना बारिश के दलदल और कीचड़ से जंग*
महाकुंभ में खुले मौसम के बीच कभी कभी हुई बारिश खलनायक बनती रही लेकिन माघ मेले के लिए बिना बारिश का वह दलदल मेला प्रशासन के लिए चुनौती बन गया है जो बिना बारिश के घाटों के किनारे फन काढ़े बैठा है। प्रशासनिक अधिकारी इस दलदल से कैसे निपटेंगे यह भी एक चुनौती है। दलदल की वजह से स्नान के लिए घाटों की संख्या में कटौती करनी होगी ऐसे में भीड़ प्रबंधन चुनौती बन जाएगा। दलदली घाटों में लोग फंस गए तो अलग जान का जोखिम।
*माघ मेले का भूमि पूजन संपन्न लेकिन जमीन के लिए संस्थाओं की जंग अभी बाकी*
माघ मेला-2026 के आयोजन के लिए प्रशासन की अग्नि परीक्षा कई मोर्चों पर इस बार दिख रही है। माघ मेले के आयोजन के लिए 10 नवंबर को मेला प्रशासन ने भूमि पूजन किया। सभी अधिकारियों ने प्रयाग के सभी देवी देवताओं और गंगा मैया से आयोजन की सफलता के लिए पूजा अर्चना की। इस बार 700 हेक्टेयर में बसने जा रहे माघ मेले में हजारों की संख्या में मेले में बसने वाली संस्थाओं को जमीन का आबंटन कहां से होगा जबकि मेले के आयोजन की तीस फीसदी जमीन पर जल और दलदल का कब्जा है।





